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आई. ए. एस. महिला टापर इवा सहाय से विशेष मुलाकात

AnantAnveshi
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आई. ए. एस. महिला टापर इवा सहाय से विशेष मुलाकात

असली हीरो वे हैं जिन्होंने विषम परिस्थितियों में सफलता हासिल की – इवा

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संघ लोक सेवा आयोग (यू. पी. एस. सी.) द्वारा आयोजित

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई. ऐ. एस.) के लिए वर्ष 2009 की परीक्षा में

 अखिल भारतीय स्तर पर तीसरा स्थान एवं महिलाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली इवा सहाय से

 गत दिवस उनके इलाहाबाद स्थित आवास पर लम्बी बातचीत हुई |

 बात-चीत के दौरान इवा के चेहरे पर जो तेज दिख रहा था

 और जिस बेबाकी  व आत्मविश्वास के साथ वह सवालों के जबाब दे रही थीं

  उससे लग रहा था कि इन्होंने “सादा जीवन – उच्च विचार” के सिद्धांत  को

पूरी तरह आत्मसात कर रखा है  | यहाँ प्रस्तुत हैं उस बातचीत के प्रमुख अंश-

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प्रश्न – आप अपनी पढाई के विषय में कुछ बताइए ?

उत्तर – मेरी स्कूलिंग रांची, झारखण्ड से शुरू हुई लेकिन कक्षा चार के बाद इलाहाबाद में ही हुई | सेंट मेरीज से मैंने कक्षा दस और बारह उत्तीर्ण किया | उसके बाद इलाहाबाद  विश्वविद्द्यालय से स्नातक किया | फिर जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्द्यालय, नई दिल्ली में प्रवेश किया | वहां से भूगोल में एम.ए. की डिग्री प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए ली | मेरे पिताजी इलाहाबाद विश्वविद्द्यालय में प्रोफेसर हैं और माँ बिहार विश्वविद्द्यालय मुजफ्फरपुर में अर्थशास्त्र  की व्याख्याता थीं |जब मैं 4 साल की थी तभी पापा ने कहा था की तुम्हें आई. ए. एस. बनना है | तभी से मैंने इसे अपना लक्ष्य बना लिया था | कक्षा दस में मुझे 87.5 प्रतिशत और कक्षा बारह में मुझे 92 प्रतिशत अंक मिले और वहीँ से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा | मेरा लक्ष्य था प्रथम स्थान प्राप्त करना क्योंकि जब आप लक्ष्य बहुत ऊँचा रखते हैं तो कोई भी लापरवाही नहीं करते | इसके लिए मैंने काफी मेहनत की और मुझे नहीं लगता कि  किसी भी इंसान के लिए इससे ज्यादा मेहनत संभव है |


प्रश्न – आपने जो अधिकतम प्रयास किया है, कुछ उसके बारे में बताइए ?


 

प्रश्न– अभी आपने कहा कि शायद आपसे कोई शक्ति इतनी मेहनत करवा रही थी तो क्या किसी शक्ति में आपका विश्वास है या इंसान की मेहनत ही सब कुछ है ?

उत्तर – एक अलग शक्ति से मेरा तात्पर्य इंसान की अपनी दृढ इच्छाशक्ति से है | आप अपने लक्ष्य पर पूरी तरह से मन को एकाग्र कर मेहनत करें तो आपकी इच्छाशक्ति आपसे वह भी करवा सकती है जो आप नहीं कर सकते | यह इच्छाशक्ति आपमें एक जुनून भर देता है कि मुझें यह करना है | 20 साल से मैंने यह लक्ष्य बना रखा था कि मुझे आई.ए.एस. की परीक्षा में पहले प्रयास में पहला स्थान लाना है | यह लक्ष्य इतना ऊँचा था कि यही मुझे प्रेरित करता  कि मैं लगातार मेहनत करूँ | मैं यह मानती हूँ कि इंसान की सफलता में पूरी लगन एवं मेहनत का हाथ होता है | ऐसा नहीं है कि मैं ईश्वर को नहीं मानती |


प्रश्न – आप भगवान को मानती हैं ?

उत्तर – हाँ, भगवान को मानती हूँ | हालाँकि मैं ज्यादा पूजा पाठ नहीं करती लेकिन श्रद्धा है | मैंने उन्हें देखा नहीं है इसलिए आँख मूंदकर नहीं मानती | इसे एक विश्वास  कह सकते हैं | मैं चाहती हूँ कि ऐसी कोई शक्ति हो जो इन्सान  को उसकी मेहनत का फल सफलता के रूप में दे |


प्रश्न – आप क्या मानती हैं कि कोई अफसर बनता है और कोई चपरासी या कुछ और…, तो इसके पीछे उनका कर्म है, मेहनत है, भाग्य है या कोई और शक्ति है ?

उत्तर – देखिये, कोई कहीं जन्म लेता है और कोई कहीं | यह तो प्रारब्ध की बात है | लेकिन उसके बाद इंसान कहाँ पहुंचता है यह उसका कर्म है | यह होता है कि बहुत कुछ पाया और खो दिया और कभी कुछ नहीं मिला था और बहुत कुछ पा लिया तो यह कर्म और मेहनत पर निर्भर है | सफलता के लिए कर्म के साथ साथ प्रारब्ध का होना भी आवश्यक है | लेकिन प्रारब्ध हमारे लिए जो भी निर्धारित करे हमें कर्म और मेहनत नहीं छोडनी चाहिए|

 

 प्रश्न – इस वर्ष की परीक्षा में कई ऐसे अभ्यर्थियों ने सफलता हासिल की है जिनके माँ-बाप अशिक्षित हैं, निर्धन हैं या बहुत छोटे पदों पर कार्यरत हैं और आपके माँ-बाप शिक्षित व संपन्न हैं तो आपको क्या लगता है कि यदि वे आपकी जगह पर होते और आप उनकी जगह पर होतीं  तो क्या वे और बेहतर कर पाते, और आप फिर भी इतना अच्छा कर पातीं ?

उत्तर – यह काफी मुस्किल प्रश्न है, बहुत कुछ मानने का मन करता है | यह निर्भर करता है कि आपके पीछे क्या प्रेरणा काम कर रही है | हाल ही में मैंने एक टी.वी. प्रोग्राम देखा था जिसमें एक लड़की ने बताया कि उसने अपने पिताजी को ऑफिस में जूठे बर्तन उठाते देखकर यह निश्चय किया कि वह इसी ऑफिस में एक दिन क्लास-वन-ऑफिसर बनकर आएगी | तो उसकी सफलता के पीछे यह प्रेरणा थी | अब मैं यह नहीं कह सकती कि मैं उस परिस्थिति में होती तो क्या करती या उस लड़की की तरह ही सोचती | लेकिन मैं यह समझती और मानती हूँ कि ऐसे लोगों के पास जो सफलता है उसके लिए उन्होंने मुझसे कहीं ज्यादा संघर्ष और परिश्रम किया होगा | असली हीरो तो वे ही हैं जिन्होंने विषम  परिस्थितियों में सफलता हासिल की है|  और इस बात का मुझे बहुत दुःख भी होता है कि कितने ही प्रतिभावान लोग हमारे देश में हैं जो जिंदगी की मार से आगे नहीं बढ़ पाते |


प्रश्न – क्या वजह है की प्रतिभावान लोग आगे नहीं आ पाते और इसका क्या समाधान  हो सकता है ?

उत्तर – इसकी मुख्य वजह है सामाजिक भेदभाव व ग्रामीण क्षेत्र में अच्छी प्रारंभिक शिक्षा का अभाव | यदि अच्छी प्रारंभिक शिक्षा मुहैया कराई  जाय तो धीरे – धीरे इन चीजों का अंतर मिट सकता है| अगर सरकार ग्रामीण क्षेत्रों  पर ही ऐसी शिक्षा उपलब्ध कराये  जिससे कि बच्चों की पढाई ठीक हो तो वे इस संघर्ष के लायक हो जायेंगे कि वे कुछ बेहतर कर सकें  | सभी को एक जैसे  अवसर और सीखने का माहौल देकर प्रतिभा को बढ़ावा और सभी को संघर्ष का मौका दिया जा सकता है |


प्रश्न– आपने प्रथम स्थान लाने का खुद पर दबाव बना लिया था | आपको नहीं लगता कि खुद पर इतना दबाव व तनाव बनाने के बजाए सिर्फ ईमानदारी से मेहनत करना ही काफी है फिर परिणाम चाहे जो हो ?

उत्तर –  मैंने लक्ष्य बनाया था प्रथम स्थान पाने का | लेकिन में इससे मनोग्रसित नहीं थी | मैंने सोचा था की प्रथम स्थान लायक मेहनत करनी है मुझे, कुछ भी छोड़ना नहीं है | चलो ऐसा सवाल आएगा तो देख लेंगे, ऐसा कुछ मेरे दिमाग में न आए इसलिए मैंने अपने सामने एक ऊँचा लक्ष्य रखा था,  और मैं खुश हूँ कि मुझे तीसरा स्थान मिला है यह भी एक सम्माननीय  स्थान है |


प्रश्न– आपने कहीं कहा है कि जो प्रथम और दितीय स्थान पर आए हैं वे आपसे ज्यादा स्मार्ट थे | तो किन मायनों में उन्हें स्मार्ट समझती हैं ?

उत्तर – देखिये, प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले शाह फैजल  जी ने एम.बी.बी.एस. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था, और मार्च 2009 में इसकी इंटर्नशिप पूरी  की, उसके बाद तैयारी की| 2-3 महीने में प्रारंभिक फिर 3-4 महीने में तैयारी कर मुख्य परीक्षा निकालना, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है | उन्होंने वैकल्पिक विषय के चुनाव में भी समझदारी दिखाई | उन्होंने  उर्दू लिया था | भाषा का विकल्प आसान होता है | और दूसरा नेचूरली वह  मुझसे कहीं ज्यादा मेधावी होंगे | और दूसरा स्थान प्राप्त करने वाले प्रकाश राज पुरोहित का जहां तक सवाल है तो वह आई.आई.टी. में चतुर्थ स्थान टापर थे | उन्होंने तो शुरू से ही काफी मेहनत की थी | तो वे लोग इसलिए स्मार्ट हैं क्योंकि उन्होंने जीवन में पहले से और आधिक समझदारी से मेहनत शुरू की जो मैंने नहीं की |

 

प्रश्न – प्रतिभा के बारे में क्या मानना है क्या यह जन्मजात होती है या इसे पैदा किया जा सकता है क्या किसी को प्रशिक्षण देकर कुछ भी बनाया जा सकता है ?

उत्तर- मैं मानती हूँ कि हर व्यक्ति में जन्मजात कोई प्रतिभा होती है उसे पहचानकर यदि व्यक्ति उस दिशा में कार्य करेगा तो उसे ज्यादा सफलता मिलेगी | किसी व्यक्ति को विशेष प्रशिक्षण देकर उससे कुछ भी कराया जा सकता है, लेकिन यदि उसमें उस क्षेत्र की प्रतिभा नहीं है तो वह एक सीमा तक ही कुछ कर सकता है, बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सकता | मैं मानती हूँ कि प्रशिक्षण लेकर मै भी शायद कोई उपन्यास लिख लूं लेकिन यदि मेरे अन्दर साहित्यिक प्रतिभा नहीं है तो मैं प्रेमचंद्र जैसा साहित्यकार नहीं बन सकती | यही बात अन्य क्षेत्रों में भी लागू होती है | 

 

प्रश्न – पढाई के अलावा किन चीजों का शौक था आपको ?

उत्तर – मित्रों  के साथ घूमने, बातें करने, मूवी देखने, गेट-टू-गेदर करने और खाने-पीने का बहुत शौक था | कक्षा 12 उत्तीर्ण  करने के बाद से एकदम परिवर्तन हो गया | कक्षा 12 के बाद से अचानक  उत्तरदायित्व का एहसास हुआ और जीवन बदल गया | मैंने वक्त बर्बाद करना बंद कर दिया | कक्षा 10 एवं 12 में कक्षा भी बंक करती थी लेकिन स्नातक के दौरान मैं बाहर दिखती ही नहीं थी |


प्रश्न– आपकी सफलता में आपकी मेहनत के अलावा किनका हाथ है ?

उत्तर – प्रत्यक्ष रूप से किसी बाहरी व्यक्ति का नहीं रहा | ज्यादा फ्रेंड्स  सर्किल नहीं रहा | हाँ परिवार में मम्मी, पापा, भाई के सहयोग की बात बताना, उनके योगदान को बेमानी बनाना हो जाएगा | भाई हर एक चीज मेरे कमरे में ले आता था | हमेशा मम्मी-पापा प्रेरित करते थे| मैं एक किताब के लिए बोलती तो वे उसका पूरा सेट मँगा देते चाहे वह  दिल्ली में मिले या कहीं भी, कैसे भी | इसके अलावा आशिमा जैन जी के इंटरव्यू  से बहुत  प्रेरणा मिली जो 2008 की महिला टापर थीं | और मैडम क्यूरी से, कि कैसे उन्होंने संघर्ष किया | और किसी का इतना ख़ास नहीं रहा | हाँ, सेंट मैरीज, इलाहाबाद में मैडम बनर्जी ने मुझे कक्षा 9 व 10 के दौरान काफी प्रोत्साहित किया और मुझमें अपना आत्मविश्वास दिखाया जबकि उस समय मैं पढ़ने में इतनी अच्छी  नहीं थी |


इवा सहाय अपने माता – पिता एवं भाई के साथ

  प्रश्न  –  आपने आई. ए. एस. बनने का लक्ष्य बनाया तो सिर्फ पापा के कहने पर या फिर आपका अपना भी कुछ विचार था कि आई. इ. एस. इसलिए बनना चाहिए ?

उत्तर – हाँ पहले तो यही था कि पापा ने बोला था, लेकिन सिर्फ यही कारण नहीं था | मेरी जिन चीजों में रूचि है, मुझे लगता है कि यही पद है जो इसको पूरा करता है,  जैसे क्षेत्रीय नियोजन है  कि यह  समस्या का समाधान हो सकता है, ऐसे विकास किया जा सकता है,  यह सब मुझे बहुत आकर्षित करता है | और जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्द्यालय में मेरा विशेषीकरण भी क्षेत्रीय नियोजन था | मैं खुद योजना बनाने का काम बहुत अच्छा करती हूँ चाहे मेरी पढाई हो या दिनचर्या हो या कुछ और | इसके अलावा मुझे लोगों से मिलने का बहुत शौक है, उन्हें जानने का, नई जगह जाने, नई चीजों और लोगों को देखने व सीखने का | लोगों के लिए कुछ करने का, उनकी तकलीफें दूर करने का | और यही पद है जो इतने  अवसर देता है | और शायद इसीलिए मेरी प्रकृति  के अनुकूल, ट्यूनिंग ही बैठ गई कि मुझे यही  करना है |

 

  

प्रश्न – योजना बनाने वाले तो बहुत होते हैं लेकिन क्रियान्वयन बहुत कम लोग कर पाते हैं | आप क्या मानती है कि आप एक अच्छी योजना बनाने के साथ -साथ अच्छा क्रियान्वयन भी कर सकती हैं  ?

उत्तर – मैं संघर्ष करती हूँ | इसलिए मैंने आई. ए. एस. को चुना कि मैं देश के लिए कुछ कर सकूं | चाहे जो भी उतार चढाव आएं मैं संघर्ष करूंगी | संघर्ष करके ही आगे बढ़ा जा सकता है| क्रियान्वयन भी एक संघर्ष है | संसाधन जुटाना और क्रियान्वयन करना, मुझे लगता है  कि मै यह काम अच्छी  तरह से कर सकती हूँ ,   आगे  वक्त बताएगा  |

 

 

 प्रश्न– आपकी नजर में इस देश की मुख्य समस्या क्या है और उसका निदान क्या है  ?

उत्तर – हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है कि हम एक होकर कभी नहीं सोचते | अगर तेलंगना के लोग तेलंगना की मांग करते हैं तो वे यह नहीं सोचते कि यदि ऐसी मांग दूसरे प्रान्तों में भी होगी, तो  और कितने प्रांत बनेंगे,  कितने चुनाव होंगे,  और कितना खर्च बढ़ जायेगा | देश को पहले रख कर हम क्यों नहीं सोचते कि देश के हित में क्या  है | इसी कारण से देश में भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, प्रांतवाद आदि समस्याएं बढ़ रही हैं| समस्याओं  का कोई दूसरा समाधान भी निकाला जा सकता है जिसका देश पर बुरा असर न पड़ता हो | अपना फायदा हमेशा पहले रहता है | हम देशभक्ति दिखाते बहुत ज्यादा हैं, झण्डा हर जगह लगायेंगे, जन गण मन गायेंगे, यह सब, लेकिन देश के हित को सबसे पहले रखना क्या होता है यह हम अभी तक नहीं जानते |

 

  

प्रश्न – इसका समाधान क्या है ?

उत्तर – इसका समाधान एक करिश्माई नेतृत्व है | जैसा कि स्वतंत्रता आन्दोलन के समय था कि एक नेता को देश मानता था | गाँधी जी, नेहरु जी की एक आवाज पर पूरा देश एकजुट, एकमत होता था | उसके सामने अन्य सारी बातें गौण हो जाती थीं | ऐसा कोई नेता जो एकजुट कर दे भारत को, उसकी जरूरत है | एक  गाँधी जी जैसा  जो चार्ज कर दें देश को | मै मानती हूँ कि  मातृभूमि के लिए प्यार यंहा के लोगों के दिल में है,  लेकिन फ़िलहाल वह छोटे-मोटे मुददों के नीचे दबा है |

 

  

प्रश्न– आप कभी यह नहीं सोचतीं कि उस कमी को आप पूरा करें ?

उत्तर –  देखिये, पहली बात तो यह है कि मैं ब्यूरोक्रेट हूँ, प्रशासनिक हूँ, सरकारी नौकर हूँ | राजनीति में जाने का कोई इरादा नहीं है | बहुत अच्छा होता अगर मै कर पाती | लेकिन शायद इतनी क्षमता नहीं है इसीलिए मैंने सरकारी नौकरी का रास्ता चुना | लेकिन ये मेरी इच्छा है कि जल्दी ही देश को कोई ऐसा नेता मिले |

 

  

प्रश्न– मायावती जी को कांशीराम जी ने राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया | यदि कभी कोई ऐसी ही प्रेरणा आपको भी मिले तो आपकी राजनीति में जाने की इच्छा हो सकती है ?

उत्तर – देखिये, मैं कह नहीं सकती कि इच्छा जागृत हो सकती है या नहीं | पर यह अभी मेरे लिए एक विवादास्पद  वक्तव्य होगा | ऐसा नहीं है कि मैं देश के लिए कुछ करना नहीं चाहती | मैं बहुत सच्चे देशभक्त परिवार से हूँ और बहुत सच्ची देशभक्त हूँ | लेकिन मैं एक तरह से सरकारी प्रवक्ता हूँ और मैं सरकार के  प्रभुत्व को चुनौती नहीं दे सकती  |

 

प्रश्न – आपके जीवन का लक्ष्य क्या है और नौकरी में आपकी प्राथमिकतायें क्या रहेंगी ?

उत्तर – मेरा पहला लक्ष्य यह है कि मैं जितनी सामान्य आज हूँ उतनी ही हमेशा बनी रहूँ | आई. ए. एस. कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है | मैं एक सरकारी सेवा में हूँ तो मैं नहीं चाहती की इस चकाचौंध में खो जाऊं | दूसरा मैं यह चाहूंगी कि मैं जिस भी प्रदेश , जिस भी शहर में रहूँ उसमें सरकार जो लोगों को दे रही है वह उन तक पहुंचे वह कैसे पहुंचे | इसके नये-नये तरीके हो सकते हैं जैसे ऑफिस में एक नियम बना दिया जाये कि 2 दिन के अन्दर फाइल निपटानी है, अपने आप भ्रष्टाचार की संभावनाएं कम हो जाएँगी | भ्रष्टाचार तभी है जब आप फाइल पर आराम कर सकतें हैं | और जैसे सुनिश्चित किया जाये कि जिनके पास बी.पी.एल. कार्ड होना चाहिए उन सबके पास बी.पी.एल. कार्ड है या नहीं, जो भी सरकार सुविधाएँ दे रही है वह उन तक पहुँच रही है कि नहीं | मैं सिस्टम में सुधार लाने कि कोशिश करूंगी |

 

प्रश्न – लेकिन इसका कड़ा विरोध हो सकता है, लोग आपको हटाना चाहेंगे ?

उत्तर- मैं उसके लिए तैयार हूँ, चाहे इसके लिए मुझे जो भी झेलना पड़े | सच्चाई, समाज और काम के प्रति ईमानदारी के लिए मुझे हाशिये पर जाना भी मंजूर है |

 

प्रश्न – आप का रोल माडल ?

उत्तर– पापा-मम्मी का धैर्य , इनका शांत रहना, मैडम क्यूरी का संघर्ष, गाँधी जी, शास्त्री जी से प्रेरित हूँ, नेहरु जी के विजन से प्रेरणा मिलती है, आशिमा जैन जी से प्रेरणा मिलती है, अलग-अलग क्षेत्र में बहुत से रोल माडल हैं |

 

प्रश्न– आप आगे की पीढ़ी और उनके माता-पिता को क्या सुझाव देना चाहेंगी ?

उत्तर-  इन्सान अच्छा विद्यार्थी रहे, अच्छा खिलाडी  रहे, इससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि वह अच्छा इन्सान रहे | माता-पिता की इज्जत करे, बड़ों की इज्जत करे | देश के लिए सोचे | पारम्परिक भारतीय मूल्यों को समझे | पाश्चात्य संस्कृति के पीछे न भागे | फैशन की अंधी दौड़ में न दौड़े | माता-पिता भी बच्चों को इनसे दूर रखें | पढाई -लिखाई पर ध्यान दें|

 

प्रश्न – महिलाओं के लिए सन्देश ?

उत्तर –  मैं यह कहना चाहूंगी कि अपने पैरों पर खड़ी हों | प्रशासनिक सेवा में, पुलिस में, ज्यादा से ज्यादा आयें | आत्मनिर्भर बनें   | पढाई पर ध्यान दें, कुछ बन कर दिखाएँ |

 

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संक्षिप्त परिचय

नाम – इवा सहाय

जन्म – 05 अगस्त, 1984 दरभंगा (बिहार)

शिक्षा – प्रारंभिक शिक्षा – रांची (1987 – 94) | माध्यमिक शिक्षा – सेंट मैरीज, इलाहाबाद (1994 – 2003) | स्नातक- इलाहाबाद  विश्वविद्यालय (2003 – 06) | परास्नातक- जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली (2006 – 08) |वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रोफेसर आर एन श्रीवास्तव के निर्देशन में मानव शास्त्र  में शोधरत | यू जी सी और सी एस आई आर फैलोशिप |

पिता – प्रोफेसर विजय शंकर सहाय मूल रूप से बिहार निवासी प्रोफेसर सहाय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मानव शास्त्र विभाग में विभागाध्यक्ष  के पद पर कार्यरत हैं |

माता – डा. वत्सला सहाय |डा. वत्सला सहाय बिहार के एक महिला कॉलेज में अर्थशास्त्र विभाग की अध्यक्ष रह चुकी हैं | बच्चों की पढाई के खातिर उन्होंने नौकरी छोड़ी |

भाई – अविजित जो इस समय रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से भूगोल में आनर्स कर रहे हैं |

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